उत्तराखण्ड
की जानकारी हमें विभिन्न स्त्रोंतों से प्राप्त होती है।
प्रागैतिहासिक काल
आद्यएतिहासिक काल
एतिहासिक
काल
प्रागैतिहासिक
काल –
एक ऐसा कालखंड जिसमें अति प्राचीन मानव के बारे में जानकारी प्राप्त होती
है।
वह काल जिसमें मानव किसी भी प्रकार की लिपि (Script) अथवा लेखन कला से परिचित नहीं था, उसे प्रागैतिहासिक काल व प्रस्तर युग के नाम से भी जाना जाता है।
प्रागैतिहासिक काल के अंतर्गत मानव उत्पत्ति से लेकर लगभग 3000 ई.पू. के मध्य का समय आता है।
पाषाण काल (जिसमें पाषाण उपकरण) एवं ताम्र पाषाण काल का अध्ययन इसी काल के
अंतर्गत किया जाता है। गुफाचित्र या गुहाचित्र भी इसी काल के
अंतर्गत शामिल किए जाते हैं।
उत्तराखंड के सापेक्ष इस प्रकार के पाषाण कालीन उपकरणों तथा गुहाचित्रों का उल्लेख आगे किया गया
है।
आद्यैतिहासिक
काल -
वह काल जिसमें मानव किसी ना किसी प्रकार की लिपि (Script) से परिचित था किंतु उस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है।
हड़प्पा सभ्यता एवं वैदिक सभ्यता का अध्ययन इसी काल के अंतर्गत किया जाता है।
3000 ई.पू. से 600 ई.पू. तक के काल को आद्यैतिहासिक काल के नाम से जाना जाता है।
कपमार्क्स, ताम्र उपकरण, मृदभांड आदि इसी काल से संबन्धित हैं।
ऐतिहासिक काल
वह काल जिसमें मानव किसी ना किसी प्रकार की लिपि (Script) से परिचित था और उस लिपि (Script) को पढ़ा भी जा चुका है।
ऐतिहासिक काल की जानकारी हमें पुरातात्विक स्रोतों, साहित्यिक स्रोतों तथा विदेशियों के यात्रा
वृतांतों से प्राप्त है। इस काल के स्रोतों को पढ़ा व समझा जा चुका हैं।
600 ई.पू. से वर्तमान तक के काल को ऐतिहासिक काल के नाम से जाना जाता
है।
इस काल खंड के
अन्तरगत पुरभिलेख, मुद्राएँ स्मारक भवन व
चित्र शैली आदि शामिल हैं।
पुरातात्विक स्रोत
प्रागैतिहासिक
कालीन उतराखंड (Uttarakhand
during prehistoric period)
उत्तराखंड के
विभिन्न स्थलों से प्रागैतिहासिक कालीन मानव के साक्ष्य प्राप्त हुए हैं इस प्रकार
की स्थल उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त हुए हैं जिनका विवरण अग्रलिखित
है।
कुमाऊँ
से प्राप्त प्रागैतिहासिक कालीन स्थल –
अल्मोड़ा :-
अभी तक खोजे गए
स्थलों में निम्नलिखित स्थल प्रमुख हैं –
लाखुडयार (Lakhudyar)–
डॉ० M.P जोशी सुयाल नदी
के पूर्वी तट पर वर्ष 1968 में लाखु उड्यार (Cave)
की खोज की थी।
लाखु उड्यार अल्मोड़ा के बड़ेछीना
के समीप दलबैंड पर स्थित हैं।
इस गुफ़ा में मानव आकृतियां,
लहरदार आकृतियां, जानवरों की आकृतिया
प्राप्त हुई है।
यहाँ मानव आकृतियों एकाकी व् समूह में नृत्य करते हुए
प्रदर्शित किया गया है।
इन चित्रों में दैनिक जीवन,जानवरों के शिकार के तरीको को लाल,सफ़ेद और
काले रंगों से उंगलियों द्वारा गुफाओं की दीवारों पर अपनी रचनात्मकता व कला को
दर्शाया गया है।
यह गुफ़ा अल्मोडा से 16
K.M दूरी पर स्थित है।
फलासीमा (Falasima)-
यह अल्मोड़ा के फलसीमा में स्थित है।
यहाँ प्राप्त आकृतियों में मानव को योग व नृत्य
करते हुए दर्शया गया है।
पेटशाला (Petshala)-
यह अल्मोड़ा के कफ्फरकोट गाँव में स्थित है।
कफ्फरकोट गाँव पेटशाला व पुनाकोट गाँवों के मध्य
में है।
कफ्फरकोट गाँव से प्राप्त चित्रों में मानव
आकृतियों को नृत्य करते हुए दर्शया गया है।
ल्वेथाप (Lvethap)-
अल्मोड़ा के ल्वेथाप से प्राप्त इन चित्रों में
मानव को शिकार करते हुए और हाथो में हाथ डालकर नृत्य करते दिखाया गया हैं।
यह सभी चित्र चटक लाल रंग से बनाये गये है।
बनकोट (Bankot)-
बनकोट पिथौरागढ़ जनपद में एक गाँव है।
बनकोट से 8 ताम्र मानव आकृतियां प्राप्त हुई हैं।
ग्वारख्या गुफा (Gvarkhya Cave)-
चमोली में अलकनंदा नदी के किनारे डुग्री गाँव के
पास ग्वारख्या गुफा स्थित
है।
उड्यार में मानव, भेड़, बारहसिंगा आदि के रंगीन
चित्र दर्शाए गये है।
यहाँ प्राप्त चित्रों का रंग लाखु गुफा के रंगों
से ज्यदा चटक वाले है।
डॉ. यशोधर मठपाल के अनुसार यहाँ 41 आकृतियाँ (30 मानवों की , 8 पशुओं की तथा 3 पुरुषों
की )है।
पीले रंग की धारीदार चट्टान में लाल व् गुलाबी
रंग से चित्र बनाये गये है।
मलारी गाँव (Malari Village)-
मलारी गाँव चमोली में तिब्बत से सटा एक गाँव है।
वर्ष 2002 में यहाँ से जानवरों
के अंग (Animal Organ),नर कंकाल (Skeletons),मिट्टी के बर्तन (Clay Pots) और 5.2 किलोग्राम का एक सोने का मुखावरण (Mask) प्राप्त
हुआ।
मलारी गाँव से प्राप्त नर कंकाल (Skeletons) और मिट्टी के
बर्तन (Clay Pots) साहित्यकारों के अनुसार लगभग 2000
ई०पू० से लेकर 6 वीं शताब्दी ई०पू० तक के है।
वर्ष 2002 में गढ़वाल
विश्वविद्यालय के द्वारा मलारी गाँव के प्रागैतिहसिक पुरातत्वस्थल (Archeology)
की खुदाई कराई गई थी।
किमनी गाँव (Kimani Village)-
किमनी गाँव चमोली के पास थराली स्थित हैं।
किमनी गाँव में थियार व पशुओं के चित्र मिले है,जिन्हें सफ़ेद रंग द्वारा बनाया
गया हैं।
हुडली (Hudali)-
उत्तरकाशी जनपद के हुडली में पाए गये चित्रों को
नील रंग (Blue Colour) से बनाया गया है।
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