भारतीय संविधान की
विशेषताएं
(1) लिखित एवं निर्मित संविधान-
संविधान सभा ने नवनिर्मित
संविधान 26 नवम्बर, 1949 को अधिनियमित, आत्मार्पित तथा अंगीकृत किया नागरिकता, निर्वाचन
और अन्तरिम संसद से सम्बन्धित उपबन्धों तथा अस्थायी और संक्रमणकारी उपबन्धों को
तुरन्त 26 नवम्बर, 1949 को लागू कर दिया गया. शेष संविधान 26 जनवरी,
1950 को लागू हुआ तथा इसी तिथि को संविधान को लागू होने की
तिथि माना गया. इसी दिन भारत को गणतन्त्र घोषित किया गया।
(2) विश्व का सबसे बड़ा संविधान-
भारतीय संविधान विश्व का
सबसे बड़ा संविधान है। इस संविधान में केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, प्रशासनिक सेवाएं, निर्वाचन आदि प्रशासन से
सम्बन्धित सभी विषयों पर विस्तार से लिखा है.
प्रारम्भ में मूल
संविधानमें 395 अनुच्छेद तथा 8 अनुसूचियाँ थीं। संविधान में निरन्तर संशोधन होते रहने से संविधान के आकार में वृद्धि होती
गई. बहुत उपबन्ध इसमें जोड़े गए तथा कुछ निष्कासित भी किए गए बयालीसवें संविधान
संशोधन (1976) द्वारा इसके आकार में विशेष रूप से
वृद्धि की.
इसमें भाग-4A तथा भाग-14-A जोड़े गए तथा अनेक अनुच्छेदों का विस्तार किया गया. प्रथम संविधान संशोधन
द्वारा नवीं तथा 5 बावनवें संविधान संशोधन अधिनियम 1985 द्वारा दसवीं अनुसूची जोड़ी गई ग्राम पंचायतों एवं नगरपालिका विषयक 73वें तथा 74वें संशोधन को ग्यारहवीं अनुसूची व
बारहवी अनुसूची में सम्मिलित किया गया है.
वर्तमान
में संविधान में 448 से अधिक अनुच्छेद हैं तथा 12 अनुसूचियां हैं.
संविधान के वृहत आकार का परिणाम यह हुआ कि संविधान में निरन्तर संशोधन करना पड़ा.
अब तक लगभग 105 संशोधन होना इसका प्रमाण है. इससे
संविधान का स्थूल रूप निरन्तर बढ़ रहा है. इससे संविधान के विकास और श्रेष्ठ
परम्पराओं का मार्ग अवरुद्ध हुआ है.
(3) संविधान की प्रस्तावना –
संविधान में एक
प्रभावशाली एवं प्रेरणा स्रोत प्रस्तावना है. यह प्रस्तावना संविधान के उद्देश्य
या लक्ष्य निर्धारित करती है. प्रारम्भ में प्रस्तावना को संविधान का अंग नहीं
माना गया तथा इसमें परिवर्तन के लिए भी कोई प्रावधान नहीं रखा गया. इसे न्यायालय
में प्रवर्तित नहीं किया जा सकता, लेकिन जहाँ संविधान की भाषा संदिग्ध हो वहाँ प्रस्तावना की सहायता ली जा
सकती है प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है अथवा यह संविधान का अंग है या नहीं? यह सदैव विवादास्पद रहा है.
इस विवाद का निर्णय
सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द
भारती बनाम राज्य (1973) में किया. इसके द्वारा
प्रस्तावना को संविधान का अंग माना गया तथा निर्णय दिया कि इसमें संशोधन भी किया
जा सकता है. बयालीसवें संविधान र संशोधन (1976) द्वारा
प्रस्तावना में संशोधन करते हुए 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' तथा 'अखण्डता' शब्द जोड़े गए.
(4) भारतीय संविधान में विभिन्न संविधानों का समावेश संविधान के स्रोत-
भारतीय संविधान बनाने से
पूर्व संविधान सभा ने विभिन्न देशों के संविधानों का अध्ययन किया तथा स्वतन्त्रता
से पूर्व बने अधिनियमों, राष्ट्रीय
कांग्रेस के प्रस्तावों का भी अध्ययन किया गया. जहाँ से जो उपबन्ध अच्छा लगा, वह ले लिया गया तथा भारतीय संविधान में सम्मिलित कर लिया गया. संविधान के
विभिन्न प्रमुख उपबन्धों के अग्रलिखित स्रोत हैं-
इसके अतिरिक्त संविधान का
पूरा मॉडल ब्रिटिश राजव्यवस्था को ध्यान में रख- "कर बनाया गया है. यद्यपि ब्रिटेन में
अलिखित संविधान है. भारत ने वहाँ स्थापित परम्पराओं को अपने अनुरूप संविधान में
लिपिबद्ध किया है
(5) कठोर तथा लचीलेपन का संविधान में समन्वय -
संविधान में संशोधन
प्रणाली के आधार पर संविधान दो प्रकार का होता है-
(1) कठोर
संविधान वह होता है जिसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया जटिल होती है।
(2) लचीला
संविधान वह होता है जिसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया सरल होती हैं. भारतीय
संविधान में संविधान संशोधन के लिए तीन प्रक्रिया अपनाई
जाती हैं.
(i) संसद के प्रत्येक सदन के साधारण बहुमत द्वारा -
साधारण विधेयक
(गैर-वित्तीय) को पारित करने की प्रक्रिया अर्थात् दोनों सदनों के उपस्थित तथा
मतदान देने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत पारित होने के पश्चात् राष्ट्रपति की
अनुमति से पारित हो जाता है. इस प्रक्रिया द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों में
संशोधन किया जा सकता है-
1. अनुच्छेद 2,
3 तथा 4- नए राज्यों का
निर्माण, राज्यों की सीमा परिवर्तन राज्यों के नाम
परिवर्तन आदि.
2. अनुच्छेद 169- किसी राज्य की व्यवस्थापिका में द्वितीय सदन-विधान- परिषद् की रचना तथा
उसका समाप्त किया जाना.
3. संविधान
की द्वितीय अनुसूची.
4. अनुच्छेद 100
(3) – संसद में गणपूर्ति. 5. अनुच्छेद 106-संसद सदस्यों के वेतन- भत्ते आदि..
6. अनुच्छेद 105-संसद सदस्यों के विशेषाधिकार तथा उन्मुक्तियाँ.
7. अनुच्छेद 118
- संसद में प्रक्रिया सम्बन्धी
नियम.
8. अनुच्छेद 120
(2) - अंग्रेजी को संसद के कार्य की भाषा सम्बन्धी नियम.
9. अनुच्छेद 124
(1) - सर्वोच्च न्यायालय का संगठन तथा न्यायाधीशों की संख्या
से सम्बन्धित.
10. अनुच्छेद 135
- सर्वोच्च न्यायालय के कार्यक्षेत्र विस्तार से सम्बन्धित.
11. अनुच्छेद 348- भारत में अधिकारिक भाषा के प्रयोग से सम्बन्धित.
12. अनुच्छेद 5 से 11 तक भारत की नागरिकता
सम्बन्धी
13. अनुच्छेद 327- देश में चुनावों से सम्बन्धित.
14. पाँचवीं
तथा छठी अनुसूची-अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों
के प्रशासन से सम्बन्धित.
15. अनुच्छेद 81-चुनावी क्षेत्रों को असीमित तथा सीमित करना.
16. अनुच्छेद 240-केन्द्रशासित क्षेत्र.
(ii) संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत द्वारा-
संशोधन विधेयक संसद के
किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा सकता है. प्रत्येक सदन में यह सदन की कुल संख्या
के बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित
होना चाहिए तथा इसके पश्चात् राष्ट्रपति का अनुमोदन मिलने के पश्चात् यह संशोधन हो
जाता है. इस प्रक्रिया द्वारा मुख्य रूप से निम्नलिखित प्रावधानों का संशोधन किया
जाता है.
1. संविधान
का भाग-3-मौलिक अधिकारों से सम्बन्धित.
2. संविधान
का भाग- 4 - राज्य के नीति निदेशक तत्व .
(iii) संघ तथा राज्यों की सहमति से-
इस
प्रक्रिया के संविधान संशोधन विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत किया जा
सकता है. प्रत्येक सदन द्वारा कुल संख्या के बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान देने
वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए. इसके पश्चात् यह पारित
संविधान संशोधन विधेयक राज्यों के विधानमण्डलों के पास भेजा जाता है. भारत के
कम-से-कम आधे राज्यों के विधानमण्डलों द्वारा साधारण बहुमत से पारित किया गया
विधेयक पारित माना जाएगा. राज्यों से अनुमोदित विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के लिए
भेजा जाता है. राष्ट्रपति की अनुमति मिल जाने के पश्चात् यह संशोधन मान्य होता है.
इस प्रक्रिया के द्वारा निम्नलिखित प्रावधानों में संशोधन किया जा सकता है-
1. अनुच्छेद 54 तथा 55 - राष्ट्रपति का निर्वाचन तथा निर्वाचन
प्रक्रिया से सम्बन्धित.
2. अनुच्छेद 73 तथा 162 - क्रमशः संघ तथा राज्य की
कार्यपालिका शक्ति से सम्बन्धित.
3. भाग
- 5 का अध्याय-4- सर्वोच्च
न्यायालय से सम्बन्धित.
4. भाग-5 का अध्याय-5-राज्यों के उच्च न्यायालय से सम्बन्धित.
5. संविधान
की सातवीं अनुसूची- राज्यों तथा संघ में व्यवस्थापिका शक्तियों का वितरण.
6. चौथी
अनुसूची- संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व से
सम्बन्धित.
7. अनुच्छेद-368
- संविधान में संशोधन की प्रक्रिया से सम्बन्धित.
(6) सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न राज्य-
भारतीय संविधान ने यह
व्यवस्था की है कि भारत एवं भारत के लोग किसी भी बाहरी या विदेशी सत्ता के अधीन
अथवा दबाव में कार्य नहीं करेंगे. अर्थात् भारत अपने सभी मामलों (बाहरी तथा
आन्तरिक) में स्वतन्त्र होकर अपने हित में स्वयं निर्णय लेगा. भारत की सम्प्रभुता
को बनाए रखने के लिए ही गुट निरपेक्षता की विदेश नीति को अपनाया गया एवं
सम्प्रभुता की रक्षा करने के लिए हर सम्भव उपाए किए गए हैं.
(7) लोकतन्त्रात्मक राज्य-
भारत में ब्रिटेन के
लोकतन्त्र के अनुरूप लोकतन्त्र की स्थापना की गई. जनता की शासन- प्रशासन में
अधिक-से-अधिक सहभागिता का सुनिश्चित किया गया. यहाँ प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की
स्थापना न करके अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की स्थापना की गई संविधान के निर्माताओं ने
केवल राजनीतिक लोकतन्त्र की ही स्थापना नहीं की, अपितु सामाजिक एवं आर्थिक लोकतन्त्र की स्थापना
का संकल्प भी लिया. भारत में ऐसे लोकतन्त्र की कल्पना की गई जिसमें कोई विशेष वर्ग
नहीं होगा तथा सत्ता किसी विशेष वर्ग के हाथ में नहीं होगी.
(8) गणतन्त्र राज्य-
भारत में ब्रिटेन के
लोकतन्त्र मॉडल को तो अपनाया गया, लेकिन राजा के आनुवंशिक पद को नहीं अपनाया गया. राष्ट्र का अध्यक्ष
आनुवांशिक न होकर निर्वाचित होगा. भारत का कोई भी नागरिक जो निर्धारित योग्यताएँ
रखता हो, बिना किसी जाति लिंग धर्म आदि के भेदभाव के
निर्वाचन द्वारा राष्ट्रपति निर्वाचित हो सकता है. 'गणतन्त्र' शब्द का यही अभिप्राय है कि भारत का राष्ट्रपति निर्वाचित होगा.
(9) संसदीय सरकार-
संसदीय व्यवस्था में संसद
को अधिक महत्व प्रदान किया जाता है, कार्यपालिका संसद के प्रति उत्तरदायी होती है.
इस व्यवस्था में दोहरी कार्यपालिका होती है एक नाममात्र की कार्यपालिका तथा दूसरी
वास्तविक कार्य- पालिका भारत में नाममात्र की कार्यपालिका राष्ट्रपति है तथा
वास्तविक कार्यपालिका प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमण्डल है. प्रधानमंत्री
तथा मंत्रिमण्डल संसद के प्रथम सदन लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी है.
उत्तरदायी का अभिप्राय यह है कि मंत्रिमण्डल उस समय तक ही अपने पद पर रह सकता है, जब तक उसे लोक सभा का विश्वास प्राप्त है मंत्रिमण्डल संसदीय व्यवस्था में
मंत्रिपरिषद् ही वास्तविक सरकार होती है, जिसे संसद
विशेष रूप से लोक सभा, नियंत्रित करती है. कभी-कभी
प्रधानमंत्री के प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण प्रधानमंत्री ही वास्तविक शासक का
रूप धारण कर लेता है. अतः आलोचक इस व्यवस्था को 'प्रधानमंत्री
व्यवस्था' भी कहने लगते हैं. जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी इसी प्रकार के प्रधानमंत्री हुए हैं. इस व्यवस्था में
मंत्रिमण्डल का महत्व अत्यधिक होता है, क्योंकि उसे लोक
सभा को भंग करने का अधिकार होता है. अतः इस शासन पद्धति को मंत्रिमण्डलात्मक
व्यवस्था' भी कहा जाता है.
(10) समाजवादी व्यवस्था –
भारतीय संविधान में समाजवादी तत्व प्रारम्भ से ही सम्मिलित थे, लेकिन इसे अधिक महत्व प्रदान करने के लिए 'समाजवादी' शब्द संविधान की प्रस्तावना में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा 1976 में सम्मिलित किया गया. 'समाजवाद' शब्द का अर्थ अत्यन्त व्यापक है. फिर भी समाजवाद का मूल अभिप्राय आर्थिक शोषण को समाप्त करना है. भारतीय समाजवाद यूरोपियन समाजवाद अथवा चीन की समाजवादी व्यवस्था के अनुरूप नहीं है. भारतीय सन्दर्भ में समाजवाद का अभिप्राय, राज्य के उस समाजवादी ढाँचे से सम्बन्धित नहीं है, जिसमें उत्पादन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है.
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